मूसा की अंतिम सेवकाई, हियाव बान्धने की सेवकाई थी, परमेश्वर ने उससे कहा, "जाकर यहोशू का हियाव बान्ध"। उसके पश्चात ही परमेश्वर ने मूसा को महिमा में ले लिया। उसी प्रकार यीशु मसीह की अंतिम सेवकाई भी हियाव बान्धने की थी। उसने पश्चाताप किए हुए चोर से कहा, "आज तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा"। उस चोर को कितनी अधिक हिम्मत मिली होगी। हम भी परमेश्वर के वचन के द्वारा दूसरों को हिम्मत दें।
प्रेरित पौलुस की अंतिम सेवकाई में से एक को देखें । चालीस दिन और चालीस रात तक उन्हें कोई प्रकाश, सूर्य, चन्द्रमा या तारे नहीं दिखाई दिए- वे जिस जहाज में थे, वह तूफान में फंस गया था। कोई भी कुछ नहीं खा सका; सभी लोग निराश थे। परन्तु उस निराशा की स्थिति में भी पौलुस ने सबके सामने खड़े होकर कहा, “ढाढ़स बान्धो... क्योंकि परमेश्वर जिसका मैं हूँ और जिसकी सेवा करता हूँ, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा..."। वह दूसरों को उत्साहित कर सका क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर उसकी ओर है। परमेश्वर के बच्चे, क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर आपकी ओर है? ऐसा है तो आप दूसरों को हिम्मत दे सकते हैं।
परमेश्वर ने आपको दसरों को हिम्मत देने की सेवा दी है। विश्वास क वचन कहे। अपनी शारीरिक आँखों से आप जो देखते हैं, उसे कहकर आप दूसरों को निराश न करें- जैसे उन दस भेदियों ने किया था। कभी हमारे बारे में ऐसा न कहा जाए "हमारे भाइयों ने हमारे हृदय को निराश (पिघला) कर दिया है। यहोशू और कालिब के समान हम कहे, "हम में जय पाने की शक्ति है।