यद्यपि मनुष्य ने पाप किया, तौभी उसके प्रति परमेश्वर का प्रेम नहीं बदला। यदि वह मनुष्य से प्रेम नहीं करता, तो वह वाटिका में फिर उससे मिलने के लिये नहीं आता। यदि उसका यही उद्देश्य होता कि उसे दण्ड देकर बाहर निकाल दे, तो वह अपने एक दूत को भेजकर, वह काम अच्छे से कर सकता था।
'फिरना' या चलने का मूल अर्थ है, हमेशा की तरह चलना । परमेश्वर हमेशा की तरह अपने बच्चों से मुलाकात कर रहा था। जैसे हम अधिकतर समय अपने बच्चों को उनकी शरारत के लिये दण्ड देने जाते है वैसे ही वह उड़ते या दौड़ते हए नहीं आया। उसने हमारे लिये कैसा उदाहरण रखा है!
"दिन के ठण्डे समय में" - 'ठण्डा', 'हवा' को भी दिखाता है। हाँ, परमेश्वर के वहाँ चलने फिरने के समय ठण्डी हवा चली होगी। परमेश्वर अपने साथ ठण्डी हवा लाता है। पाप मनुष्य को अशान्त कर देता है। इसलिये उसे आराम चाहिये। मनुष्य के संकट के समय उसे शान्ति देने के लिये, परमेश्वर दिन के ठण्डे समय में वहाँ आया होगा।
यदि किसी ने गलती की हो और उसे सुधारना या दण्ड देना है, तो उसके साथ बर्ताव करने के पहिले, अपने हृदय में कोई क्रोध या नाराजगी का कोई अंश है कि नहीं करके जाँच लें। क्रोध में आकर हम कुछ न करें। परमेश्वर कुछ भी असावधानी के साथ नहीं करता और हम भी ऐसा न करें।
गलत समय पर कहा जाने वाला सही वचन भी गलत है। गलत समय या गलत रीति से किया जानेवाला सही काम भी गलत है।